एनडीए सरकार के तहत शुरू की गई प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (पीएमयूवाई) को परिवर्तनकारी योजना के रूप में प्रचारित किया जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद कई मौकों पर इस योजना की प्रशंसा की है।
पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने 2019 के बजट सत्र के दौरान संसद में कहा, “(दिसंबर 2018 के अंत तक) सदस्यता-वाउचर रिलीज की तारीख से एक वर्ष पूरा कर चुके लगभग 80% पीएमयूवाई लाभार्थी पुनः सिलेंडर भरवाने आए हैं।”
हालाँकि, जमीनी हकीकत इस दावे के विपरीत है।
इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट की एक शोध रिपोर्ट बताती है कि पीएमयूवाई द्वारा 6 करोड़ घरों को एलपीजी कनेक्शन प्रदान करने के बावजूद, लगभग 98 प्रतिशत घरों में चूल्हों का उपयोग जारी है।
अध्ययन चार राज्यों बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में किए गए सर्वेक्षण पर आधारित था। अध्ययन में पाया गया कि इन चार राज्यों में 76 फीसदी परिवारों के पास अभी एलपीजी कनेक्शन है। हालांकि, इनमें से 98 प्रतिशत से अधिक घरों में चूल्हा भी है।
यह भी पता चला है कि इनमें से केवल 27 प्रतिशत परिवार विशेष रूप से गैस स्टोव का उपयोग करते हैं, जबकि 36 प्रतिशत विशेष रूप से चूल्हे का उपयोग करते हैं। 37 प्रतिशत द्वारा चूल्हा और गैस स्टोव दोनों का उपयोग करने की जानकारी सामने आई है।
“सिलेंडर को पुनः भराने में उनके मासिक उपभोग का एक बड़ा हिस्सा खर्च हो जाता है और सिलेंडर खाली होने के तुरंत बाद उन्हें रिफिल मिलने की संभावना कम हो सकती है। एक सिलेंडर को रिफिल कराने में ग्रामीण भारत में औसत मासिक खर्च का आधा हिस्स्सा (राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय 2013) लग जाता है और यदि सिर्फ सिलेंडर का ही उपयोग किया जाता है, तो औसत ग्रामीण घर में हर महीने एक सिलेंडर के इस्तेमाल होने की संभावना होगी। यह संभव है कि गरीब परिवार अपने सिलेंडर को अक्सर खर्च के कारण रिफिल नहीं करते हैं” जैसा कि रिपोर्ट में कहा गया है।
इस योजना में अन्य खामियां भी हैं। सबसे पहले, न तो ग्रामीण गरीबों को दिए गए गैस कनेक्शन मुफ्त हैं और न ही उन्हें सिलेंडर पर सब्सिडी मिली है। (मार्च 2018 तक) योजना के सभी लाभार्थियों को गैस कनेक्शन मिलते ही 1,750 रुपये का भुगतान करना है। इसमें से 990 रुपये चूल्हे के लिए लिए जाते हैं, जबकि शेष 760 रुपये पहले सिलेंडर के लिए लिए जाते हैं।
सुनीता और उसके पति सुरेश की मासिक आय 7000 रूपये है और उन्हें अपने दो बच्चों एवं माता-पिता सहित 6 लोगों का गुजरा करना होता है। ऐसे में उनके लिए सिलेंडर रिफिल के लिए 782 रूपये खर्च करना काफी मुश्किल है। शुरू में दो बार रिफिल कराने के बाद पिछले तीन साल से उन्होंने सिलेंडर को कोने में रख दिया और वापस प्राकृतिक ईंधन के साथ चूल्हे का इस्तेमाल करना शुरू करा दिया, क्योंकि वो उसके लिए सस्ता पड़ रहा है।
दूसरा, हर लाभार्थी को 1,600 रुपये की वित्तीय सहायता देने का दावा गलत है। योजना के तहत पहले छह सिलेंडर की रिफिलिंग पर प्रदान की जाने वाली सब्सिडी सरकार द्वारा रखी जाती है। इसलिए, सरकार तथाकथित वित्तीय सहायता के रूप में जो कुछ भी प्रदान करती है उसे वापस लेती है।
योजना के तहत सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली एकमात्र चीज 150 रुपये का रेगुलेटर है।
योजना के तहत, ग्राहकों को पहले छह सिलेंडर बाजार मूल्य पर खरीदने होंगे, जिनकी कीमत लगभग 750-900 रुपये है। आमतौर पर, 240-290 रुपये सब्सिडी के रूप में प्रदान किए जाते हैं। इस गणना से, सरकार लाभार्थियों से सब्सिडी के रूप में 1,740 रुपये कमाती है।
संभवतः यही कारण है कि अधिकांश लाभार्थी दूसरी बार अपना सिलेंडर रिफिल नहीं करवाते हैं। लगभग 50 प्रतिशत लाभार्थी इसे हर 2 महीने में रिफिल करते हैं, जबकि 30 प्रतिशत हर 3-4 महीने में एक बार रिफिल करते हैं।
अपनी योजना की विफलता को देखते हुए, सरकार ने अप्रैल 2018 में, गैस सिलेंडर पर सब्सिडी प्रदान करने का निर्णय लिया। तो, फिलहाल के लिए, यह 1,750 रुपये की वसूली बंद कर दी गयी है। इस बदलाव से पहले, प्रत्येक लाभार्थी से 1,750 रुपये प्राप्त करने के बाद ही सब्सिडी प्रदान की जाती थी।
पीएम मोदी ने 1 मई 2016 को उत्तर प्रदेश के बलिया की जमीन से प्रधान मंत्री उज्ज्वला योजना का उद्घाटन किया। योजना के तहत, 5 करोड़ महिलाएं, जो बीपीएल की श्रेणी में आती हैं और ग्रामीण क्षेत्रों में रह रही थीं, को तीन वर्षों में गैस कनेक्शन प्रदान किया जाना था। उद्देश्य उन्हें जलाऊ लकड़ी और पारंपरिक बायोमास ईंधन के उपयोग से मुक्ति दिलाना था, जो श्वसन रोगों का कारण बनते हैं।
स्पष्ट रूप से, सरकार न तो लक्षित संख्या हासिल कर पाई है और न ही महिलाओं को जलाऊ लकड़ी का उपयोग करने से रोक पाई है, क्योंकि गैस उपयोग पर उनके द्वारा दी जाने वाली लागत उनके लिए बहुत अधिक है। मुफ्त गैस कनेक्शन देने का सरकार का दावा एक झूठ के अलावा कुछ नहीं है। उज्ज्वला योजना ग्रामीण घरों को रोशन करने में विफल रही है।
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