500 days on, India still reeling under demonetisation impact

demonetisation

By: Simmi Ahuja

50 से हुए 500 दिन पर आज भी भारत सह रहा है नोटबंदी की मार

“मुझे सिर्फ 50 दिन दो, अगर उसके बाद भी असुविधा रही तो जो आप बोलो के वो सजा भुगतने को तैयार हूँ” 2016 नवंबर मे प्रधानमंत्री ने बोला था। पर आज 500 दिनों के बाद भी कई राज्यों के  ATM में पैसे नहीं। जहाँ लोग एक ATM से दूसरे पर अपने पैसे निकलवाने की दौड़ धुप कररहे हैं वहीँ प्रधानमंत्री जी लंदन में बैठे भारतीयों द्वारा किए गए अधीरता की सराहना करते  हैं|

कुछ ही वक्त पहले जब भाजपा को GST और नोटबंदी पर प्रधानमंत्री ने खुद बोला था की मेरे काम को केवल GST और नोटबंदी के आधार पर न जांचा जाये|

नोटबंदी के 500 दिनों से अधिक समय बाद, मोदी सरकार अभी भी प्रिंटिंग प्रेस से आम आदमी की जेब में मुद्रा का प्रवाह सुलझाने में सक्षम नहीं है। भारतीय रिज़र्व बैंक के साथ स्वायत्तता के किसी भी समानता को समाप्त करने के बाद, सरकार खुद को नकद संकट से दूर नहीं कर सकती है। अप्रैल 2018 का नकद संकट सरकार द्वारा बुरी तरह गलत तरीके से लागू की गई नीतियां हैं जिनका खामियाजा आम जनता को दोबारा भुगतना पड़ रहा है । आज स्थिति उतनी ही बदतर है जितनी नवंबर 2016 में थी। इस बार सरकार को भी कारण नहीं पता की नोटों में अचानक भारी कमी आयी कैसे?

वहीँ देश भर के  बैंकों ने अभी तक के सबसे ज्यादा नकली नोट पकड़े हैं. और तो और, नोटबंदी के बाद संदिग्‍ध लेनदेन में 480 फीसदी का इजाफा हुआ है। रिपोर्ट केंद्रीय वित्‍त मंत्रालय की फाइनेंशियल इंटेलीजेंस यूनिट (एफआईयू) ने तैयार की है जिससे खुलासा होता है की नोटबंदी के बाद बैंकों में संदिघ्ध नोटों की भरमार हुई है। ऐसे नकली नोटों की ट्रांसक्शन लगभग 4.73 लाख है|

संदिग्ध ट्रांसक्शन रिपोर्ट (एसटीआर) के मामले सबसे अधिक बैंकों की श्रेणी में सामने आए। 2015-16 के मुकाबले इसमें 489 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। वहीं, वित्तीय इकाइयों के मामले में यह बढ़ोतरी 270 प्रतिशत की रही। वर्ष 2015-16 में कुल 1.05 लाख एसटीआर बनाई गई थीं। इसमें से 61,361 एसटीआर बैंकों द्वारा एफआईयू को भेजी गई थीं। नोटबंदी के बाद इनकी संख्या बढक़र 3,61,215 तक पहुंच गई। वहीं, अन्य वित्तीय इकाइयों के संबंध में एसटीआर का आंकड़ा 40,033 था। नोटबंदी के बाद यह बढक़र 94,837 पर पहुंच गया। जाली मुद्रा के लेनदेन के मामलों में 2016-17 के दौरान इनकी संख्या में पिछले साल के मुकाबले 79 प्रतिशत का इजाफा हुआ। 2015-16 में जाली मुद्रा रिपोर्ट (सीसीआर) की संख्या 4.10 लाख थी। सीसीआर की पहली बार गणना वित्त वर्ष 2008-09 में आरम्भ गई थी जिसका उद्देश्य था संदिघ्ध लेनदेन में आँख रखना। उसके बाद नोटबंदी वाले वित्त वर्ष में इस तरह की घटना चरम पर रही। सीसीआर तभी जारी किया जाता है, जब बैंक में नकली भारतीय मुद्रा नोट (एफआइसीएन) पकड़ में आती है।

फाइनेंसियल इंटेलीजेंट यूनिट या  एफआइयू का मुख्या काम है आतंकी संगठनों या मनी लॉन्डरिंग में संदिग्ध लेनदेन का विश्लेषण करना है। रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2016-17 के दौरान सीसीआर की 7.33 लाख से ज्यादा घटनाएं सामने आईं, जबकि उससे ठीक पिछले वित्त वर्ष में 4.10 लाख से ज्यादा बार बैंकों में जाली नोट पकड़ी गई थी।

एफआइयू के एंटी मनी-लांड्रिंग नियमों के तहत जब भी बैंकों के लेनदेन में नकली या फर्जी भारतीय मुद्रा असली के तौर पर किया जाता है या कोई फर्जी या नकली नोट पकड़ में आता है, तो एफआइयू को इसकी सूचना दी जानी जरूरी होती है।

इसका सीधा सीधा मतलब निकलता है की भाजपा सरकार चाहे कितने भी दावे कर ले, नोटबंदी एक विफल प्रयोजन रहा। जिसमे घुन्न की तरह आम आदमी पिसा।

इस तुग़लकी प्रयोजन से न तो कला धन काबू आया, ना आतंकवाद रुका ना ही नकली नोटों का बनना। तो यह प्रश्न उठना लाजमी है की किस लिए और किसके कहने पर विश्व के उभरते आर्थिक देश को पीछे धकेलने का काम किया गया?

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