जब से मोदी सरकार सत्ता में आई है, तब से उन पर मीडिया की स्वतंत्रता को बाधित करने के आरोप लगते रहे हैं। मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल के शुरू होते ही प्रेस की आजादी पर लगाम कसने के लिए एक कदम और आगे बढ़ाया है।
मोदी सरकार ने देश में तीन बड़े मीडिया समूहों को सरकारी विज्ञापन देने बंद कर दिए हैं।
मोदी सरकार की गाज जिन अख़बारों पर गिरी है, उस सूची में बेनेट कोलमैन कंपनी के ‘द टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ और ‘द इकॉनमिक टाइम्स’, एबीपी ग्रुप के ‘द टेलीग्राफ’ जैसे बड़े अखबार समूह शामिल हैं। इस सूची में राफेल जेट की खरीद पर पीएमओ की दखल होने का खुलासा करने वाला ‘द हिन्दू’ अखबार भी शामिल है।
सामूहिक रूप से इन अखबारों की मासिक पाठक संख्या 2.6 करोड़ से ज्यादा है। खबरों के अनुसार टाइम्स समूह के 15 प्रतिशत से ज्यादा विज्ञापन सरकारी होते हैं। एबीपी ग्रुप के ‘द टेलीग्राफ’ अखबार को भी लगभग 15 प्रतिशत विज्ञापन सरकार की तरफ से ही मिलते थे। अंग्रेजी अखबार ‘द हिन्दू’ को मिलने वाले सरकारी विज्ञापनों में भी कमी आई है।
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार, आलोचक लगातार कहते रहे हैं कि जब से मोदी सरकार केंद्र में आई है, तब से मीडिया की स्वतंत्रता खतरे में है। वहीं, कई खबरें ऐसी भी आई हैं, जिनमें मोदी सरकार की आलोचना करने पर पत्रकारों को डराया-धमकाया भी गया है।
लोकसभा में कांग्रेस पार्टी के नेता अधीर रंजन चौधरी ने इस फैसले को अलोकतांत्रिक बताया। द क्विंट हिंदी के अनुसार उनका कहना था, ‘मीडिया को दबाया जा रहा है और सरकार के खिलाफ बोलने पर अखबारों के विज्ञापन रोके जा रहे हैं।’
गौरतलब है कि भारत साल 2019 में वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में 180 में से 140 वें स्थान पर रहा, जो कि अफगानिस्तान, म्यांमार और फिलीपींस जैसे देशों से भी कम है।
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