By: Vishal Gaur
कर्नाटक चुनाव: मोदीजी को चुनाव प्रचार में उतारना बीजेपी के लिए मुसीबत बन सकता है।
देश की राजनीति में आजकल कर्नाटक चुनाव मुख्य रूप से छाया हुआ है। यह चुनाव देश की दोनों प्रमुख पार्टियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। जहां एक ओर कांग्रेस है जो चुनाव जीतकर 2019 के लिए जनता के सामने अपना दावा पेश करना चाहती है। तो वहीं दूसरी ओर बीजेपी है,जो उपचुनावों में हुई हार के बाद दुबारा से जीत के रथ पर सवार होना चाहती है।
इसीलिए अब कर्नाटक चुनाव में बीजेपी ने अमित शाहजी और आदित्यनाथ जी के प्रचार के उपरांत अपेक्षित परिणाम न मिलता देख मोदीजी को प्रचार के लिए उतारने का निर्णय किया है। किन्तु क्या यह निर्णय सही है?
क्या बीजेपी मोदीजी की छवि को लेकर एक बहुत बड़ा जुआ नहीं खेल रही है?क्या कर्नाटक चुनाव में मोदीजी को प्रचार के लिए उतारना एक बड़ी भूल सिद्ध होगा ? आइये जानने की कोशिश करते है कि क्यों मोदीजी के लिए गुजरात वाला करिश्मा कर्नाटक में करना सम्भव नहीं?
मोदीजी का चुनाव प्रचार, का जो तरीका है वह मुख्य रूप से निम्न बिन्दुओ पर फोकस रहता है।
ध्रुवीकरण (Polarisation), यदि हम पिछले कुछ वर्षो की मोदीजी के चुनावी भाषणों को देखे,तो हम पायेंगे कि मोदीजी अपने वाक्यों से बड़ी आसानी से यह करने में सफल रहते हैं। जैसे गुजरात चुनाव में खिलजी वाली बात करके उन्होंने यह बड़ी आसानी से चुनाव का मुख मोड़ने की कोशिश की थी। किन्तु कर्नाटक में साक्षरता प्रतिशत अधिक होने और समाज के जागरूक होने के कारण यह उतना सफल होगा उसकी सम्भावनाये कम ही हैं। किन्तु फिर भी बीजेपी इसके लिए प्रयत्न कर सकती है।
सपना (Aspiration), लोगो को सपना दिखाना और चुनाव जीत लेना। जैसा कि पिछले लगभग हर एक चुनाव में हम देख चुके हैं कि किस प्रकार चुनाव के समय नए नए वादे किये जाते हैं और बाद में उनको नकार दिया जाता है। किन्तु जिस प्रकार का कार्य पिछले ५ सालो में कांग्रेस की सरकार ने राज्य में किया है मुख्य रूप से सामाजिक सुधार की योजनाओ के द्वारा जैसे
इंदिरा कैंटीन – जिसके द्वारा लोगो को १० रूपये में भरपेट भोजन मिलता है।
अन्ना भाग्य योजना – जिसमे गरीब परिवारों की 30 किलो तक चावल मिलता है।
आरोग्य भाग्य योजना – जिसके अंतर्गत लोगो को फ्री मेडिकल की सुविधा मिलती है।
क्षीर भाग्य योजना – जिसके अंतर्गत स्कूल में पड़ने वाले बच्चो को दूध दिया जाता है।
इनके अतिरिक्त कृषि भाग्य योजना, शादी भाग्य योजना , मनस्विनी योजना और अन्य योजनाए है जिनसे गरीब लोगो को बहुत फायदा हुआ है।
सामाजिक सुधार की योजनाओ के अतिरिक्त भी जहां पूरा देश बेरोजगारी से जूझ रहा है कर्नाटक काफी हद तक रोजगार देने में सफल रहा। टेक्नोलॉजी , इंफ्रास्ट्रक्चर, महिला सुरक्षा के मामले में भी कर्नाटक देश बाकि राज्यों से काफी आगे है।
इन सभी को देखते हुए लगता है कि इस दांव के चलने की सम्भावना भी कम ही है।
कांग्रेस को टारगेट करना। किन्तु यहाँ कर्नाटक के सभी सोशल पैरामीटर में काफी आगे होने के के कारण कांग्रेस को टारगेट करना आसान नहीं। वहीं सिद्धारमैया जी द्वारा कर्नाटक अस्मिता के मुद्दा उठाने के बाद उन्हें टारगेट करना भी आसान नही।
भ्रस्ट्राचार (Corruption), के मुद्दे पर कांग्रेस को घेरना आसान नहीं होगा। पिछली रैली में मोदीजी यह कोशिश कर चुके हैं, किन्तु येदुरप्पा को मुख्यमंत्री उम्मीदवार और रेड्डी बंधुओ को टिकट देने के बाद कांग्रेस लगातार बीजेपी के ऊपर इस मुद्दे को लेकर हमलावर है। तो अब भ्रस्ट्राचार पर भी कांग्रेस को घेरना आसान नहीं होगा।
यदि हम जातिगत आंकड़ों की बात करते है कि जब बीजेपी ने कर्नाटक में सरकार बनायीं थी तो उसमे बहुत बड़ा हाथ लिंगायत समाज का था जो लगभग राज्य में 17 % है। किन्तु सिद्धारमैया जी द्वारा लिंगायत समाज की इच्छा को देखते हुए, समाज को अलग मान्यता की बात स्वीकार करने के कारण इस वर्ग का बहुत बड़ा हिस्सा कांग्रेस को मिलता दिख रहा है।
SC/ST समाज द्वारा जिस प्रकार पिछले दिनों बीजेपी के विरोध में देशव्यावी आंदोलन किया था, उसे देखते हुए बहुत कम ही सम्भावनाये है कि यह वर्ग बीजेपी के पास जायेगा। वैसे भी यह वर्ग शुरू से कांग्रेस के साथ रहा है। कर्नाटक में यह वर्ग लगभग 23 % है।
मुस्लिम व ईसाई समुदाय जो करीब 17 % है, वह भी कांग्रेस का साथ खड़ा दिखाई पड़ रहा है।
इन सभी को देखते हुए लगता है की शायद ही कोई करिश्मा मोदीजी कर्नाटक में कर पाएंगे और बीजेपी को जीता पायेंगे।
किसकी जीत होगी या किसकी हार होगी,यह तो चुनाव परिणाम आने के बाद ही पता चलेगा। किन्तु यह तय है की कर्नाटक चुनाव में मोदीजी को उतारकर बीजेपी एक बहुत बड़ा जुआ खेलने जा रही है। क्योकि यदि बीजेपी कर्नाटक में चुनाव हारी , जैसा कि सभी ओपिनियन पोल दिखा रहे हैं तो यह मोदीजी की छवि को गहरा नुकसान पहुँचायेगा। जिसके दूरगामी परिणाम होंगे।
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