Politics

Amidst all the politics, it is the common man who suffers

देश की उलझीं सियासत में जनता कहाँ खड़ी है?

पिछले कुछ वर्षों से देखा जाये तो भारतीय राजनीति बहुत दिलचस्प हो गया हैं, पहले नीतियों की आलोचना होती थी। आज व्यक्तिगत होने लगे, एक दूसरे पर अभद्र टिप्पणी तक पहुँच गये। एक दूसरे में कट्टरता इस कदर बढ गयी कि देशहित के मूद्दों पर भी विरोध होने लगा। वक्त था 2014 का आम चुनाव. देश की सियासत बदली, सिंहासन बदला, जनता की सोच बदल गई।

2014 के चुनाव में नरेंद्र मोदी ऐसे ऐसे लोक लुभावन, वादें सपने किये और दिखाये थे, जो पूरा होना तो असंभव था, खैर जनता ने विश्वास करके बहुमत की सरकार चुना। सरकार बदल गई, रामराज्य, मंगलराज का नारा गढे जाने लगा, न्यू इंडिया का सपने दिखाया जाने लगा। जनता की अपेक्षाऐं अधिक थी। भाजपा सपने दिखाकर वोट हासिल करने में कामयाब हो गई।

आज केन्द्र में नरेंद्र मोदी की सरकार है बीस राज्य में NDA नेतृत्व की सरकार है। चार साल हो गऐ नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बने हुऐ, जनता और विपक्ष सवाल पूछती है उस वादें सपने को याद दिलाती है। सरकार का जबाब आता है, सत्तर साल मे देश लूट कर चला गया। जनता पूछती है, प्रधानमंत्री जी यूवाओं को दो करोड़ नौकरी देने का वादा किये थे कहाँ है नौकरी.? प्रधानमंत्री जी का जबाब आता है, पकोड़े बेचिये वो भी तो नौकरी है। आज पकोड़े बेचिऐ आपके आने वाली पीढी उधोगपति बनेगी।

जनता पूछती है प्रधानमंत्री जी किसान का कर्ज माफ करिये आपने वादा किया था, प्रधानमंत्री जी का जबाब आता है, किसान तो मरते ही है, मेरी सरकार ने कर्ज माफ करने का वादा नही किया था। जनता पूछती है, प्रधानमंत्री जी मंहगाई और अपराध चरम सीमा पर है, प्रधानमंत्री जी का जबाब आता है, भारत माता की जय और वन्दे मातरम गाकर देशभक्ति साबित करो।

जनता पूछती है, मोदी जी एससी/एसटी एक्ट कमजोर कर दिया गया, सीबीएससी पेपर, मेडिकल पेपर लीक हो गया हमारी जिंदगी दाँव पर हम क्या करें.? सरकार का जबाब आता है, ये काम विपक्ष का हैं हम क्या करे.? विपक्ष से सवाल किजिये। जब सरकार बेकफूट पर आ जाती है तो कभी गाय के नाम, कभी भारत माता के नाम, कभी राम के नाम पर, कभी देशभक्ति के नाम पर, कभी हिन्दूत्व के नाम पर,  हिंसा को बढावा देती है। जनता को रोजगार मिल नही रहा, यूवाओं के परीक्षा पत्र लीक हो रहे है। किसान कर्ज से परेशान है। व्यापारी जीएसटी, सीलिंग से परेशान है। शिक्षक, बैंक कर्मचारी को सैलरी नही मिल रहा है। मंहगाई, अपराध, धर्म की कट्टरता बढ रही है।

प्रतिदिन महिलाओं, बच्चिओं को बलात्कार किया जा रहा है, प्रधानमंत्री जी, मौन धारण किये हुऐ है, सवाल पुछिऐ तो जबाब आता है, बलात्कार पर राजनीति नही होनी चाहिऐ। जनता भी यही कहती है बलात्कार पर राजनीति नही होनी चाहिऐ लेकिन वक्त भूला नही जाता निर्भया का वो कांड जिसका सीधा आरोप मोदी जी ने सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी पर गढ दिये थे। आज नोटबन्दी किये हुऐ डेढ साल से अधिक हो गऐ फिर भी एटीएम, बैंक खाली है लोग लाईंन में लगे है उधर प्रधानमंत्री जी के मित्र अरबों अरबों रु लेकर भाग रहें है  लेकिन प्रधानमंत्री जी मौन धारण किये हुऐ है।

जब भी कोई गंभीर मुद्दे आते है, तो सरकार विपक्ष पर आरोप मढ देती है और अपना पल्ला झाड़ने की कोशिश करती है। उसमे कामयाब भी सरकार होती दिखाई पड़ती है वजह है भाजपा के पास संसाधन है, मिडिया है, पैसा है, पैड वर्कर है। लेकिन ऐसे उलझे सियासत में जनता कहाँ जाये? जनता अपनी समस्याऐं किसको सुनाऐ? इस अनसुलझे सियासत में जनता का सवाल और मूद्दे कहाँ है.? जनता कहाँ खड़ी है? केन्द्र में मोदी की सरकार बने चार साल हो गये अब जबाब देही तय होनी चाहिये। जनता के मूद्दें का हल निकाला जाना चाहिये। कब तक केन्द्र की मोदी सरकार चुप रहेगी, दूसरो पर आरोप लगाकर बचती रहेगी?

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